एक मुलाकात: भारत के महानतम ऑफ स्पिनरो ईरापल्ली प्रसन्ना से

Updated: Tue, Apr 02 2019 17:57 IST
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2 अप्रैल। भारत के महानतम ऑफ स्पिनरों में शुमार ईरापल्ली प्रसन्ना को नाम बेहद अदब से लिया जाता है। यह वह खिलाड़ी है जिसने विंडीज के दिग्गज बल्लेबाजों को अपनी फिरकी से नचाया है। आज प्रसन्ना समय की बांसुरी पर खुद नाच रहे हैं। उन्हें इससे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि वह खुद समय को अपने ऊपर हावी होने देना चाहते हैं।

मौजूदा समय में वह अपनी पत्नी तथा बेटी के साथ समय बिता रहे हैं। प्रसन्ना अब जीवन में कुछ खास नहीं कर रहे हैं वह कहते हैं कि 'मेरी कोशिश एक सुखी जीवन जीने की है।'

आईएएनएस की विशेष सीरीज ''वेयर दे आर' (वे कहां हैं) के लिए जब प्रसन्ना से बात की गई तो उन्होंने तफ्सीस से बात करते हुए कहा कि 'मैं समय को अपने ऊपर हावी होने दे रहा हूं।' 

प्रसन्ना ने कहा, "मैं कुछ नहीं कर रहा। मैं समय को अपने ऊपर हावी होने दे रहा हूं। मैं अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहा हूं। मेरी कोशिश सुखी जीवन जीने की है। मैं अपनी तरह से जिंदगी जी रहा हूं। थोड़ा बहुत गोल्फ खेलता हूं। एक पछतावा जो शायद मुझे है वो यह है कि बोर्ड अभी जिस तरह पुराने खिलाड़ियों पर ध्यान दे रहा है उसकी तुलना में वह और अच्छे से पुराने खिलाड़ियों की देखभाल कर सकता था।"

प्रसन्ना ने भारत के लिए अपना आखिरी टेस्ट मैच लाहौर में 1978 में पाकिस्तान के खिलाफ खेला था। संन्यास के बाद प्रसन्ना ने अपने पिता की बात का अनुसरण किया जिन्होंने प्रसन्ना से हमेशा जमीन से जुड़ा रहने को कहा था। अपने पिता की सीख पर यह ऑफ स्पिनर अभी तक चल रहा है। 

संन्यास के बाद अपने जीवन के बारे में बताते हुए प्रसन्ना ने कहा, "मेरे पिता ने मुझसे उनकी मौत से पहले एक बात कही थी कि याद रखो तुम ब्लॉक ए से शुरुआत कर रहे हो तुम जहां भी जाओगे लौट कर ब्लॉक ए पर ही आओगे। तुम नए स्तर पर जाओगे तो तुम्हारी सोच भी बदलेगी लेकिन जो जीवन तुम ब्लॉक ए में जी रहे हो तुम्हें वहीं पर लौट कर आना है। इसलिए इसे मत भूलना मैं संन्यास के बाद भी डाउन टू अर्थ इंसान रहा। मैंने अपने फेम को ज्यादा तवज्जो नहीं दी, हालांकि मुझे ज्यादा फेम मिला भी नहीं, लेकिन कोई बात नहीं। मेरे पास जो भी फेम था उसे मैंने भगवान की कृपा माना।"

प्रसन्ना ने अपने करियर के दौरान पांच साल क्रिकेट छोड़ दिया था। 1962 से 1967 के बीच वह क्रिकेट छोड़कर इंजीनियरिंग करने चले गए थे। इसके पीछे भी प्रसन्ना ने अपने पिता को कारण बताया और कहा 'मैंन उनसे वादा किया था उसे निभाने गया था।' 

पांच साल के अंतराल पर भी प्रसन्ना का क्रिकेट को लेकर जुनून कम नहीं हुआ था और उन्होंने 1967 में वापसी की थी। 

इस पर प्रसन्ना ने कहा, "मुझे जब वेस्टइंडीज सीरीज के लिए चुना गया था तब मैंने अपने पिता से कहा था कि मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करूंगा और उन दिनों में पढ़ाई को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती थी। जब मैं वेस्टइंडीज से वापस आया तो मैंने अपने पिता से किए गए वायदे को पूरा किया ताकि मैं अपनी तरह से अपनी जिंदगी जी सकूं। इसलिए मुझे कुछ साल की कुर्बानी देनी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी वह जुनून नहीं गया और फिर मैंने वापस आकर क्रिकेट शुरू की और फिर मैं भारतीय टीम में वापस आया।"

प्रसन्ना को भारत के पूर्व कप्तान नबाव पटौदी का पसंदीदा खिलाड़ी माना जाता था। पटौदी ने हमेशा प्रसन्ना को टीम में प्राथमिकता दी। इस पर पूछने पर प्रसन्ना ने कहा, "यह इसलिए था कि वो मेरी सोच को समझते थे और मैं उनकी सोच को समझता था। इसलिए हम एक दूसरे के साथ आसानी से काम कर सके। वह भी अटैक में विश्वास रखते थे और मैं भी। मैं मानता था कि गेंदबाज को हमेशा विकेट लेने के लिए जाना चाहिए और वो भी कहते थे कि मैं गेंदबाज को गेंद विकेट लेने के लिए देता हूं। यह बहुत सहज बात थी।"

प्रसन्ना से जब उनके पसंदीदा भारतीय बल्लेबाज के बारे में पूछा गया तो उन्हें विजय मांजरेकर का नाम लिया और सुनील गावस्कर तथा गुणाप्पा विश्वनाथ को उनके दाएं-बाएं हाथ बताया। 

भारत के लिए 49 मैचों में 189 विकेट लेने वाले प्रसन्ना ने कहा, "मुझे लगता है कि विजय मांजरेकर मेरी नजर में भारत के महान बल्लेबाज हैं। मैंने उन्हें 60 के दशक की शुरुआत में उनको गेंदबाजी की थी। इसके बाद मैंने गावस्कर और विश्वनाथ को गेंदबाजी की और मैं सिर्फ यह कह सकता हूं कि विश्वनाथ और गावस्कर, विजय मांजरेकर के दाएं और बाएं हाथ थे।" प्रसन्ना को 1970 में भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा था। 

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