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देश का लोकतंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण या आईपीएल?

नई दिल्ली, 14 अप्रैल (हि.स.) । लोकसभा चुनावों के दौर में आईपीएल के आयोजन से लोगों में काफी उत्साह है। गर्मी के मौसम में क्रिकेट के रोमांच के साथ युवा वर्ग का भरपूर मनोरंजन होने वाला है और इसके साथ

Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma February 09, 2015 • 03:26 AM
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नई दिल्ली, 14 अप्रैल (हि.स.) । लोकसभा चुनावों के दौर में आईपीएल के आयोजन से लोगों में काफी उत्साह है। गर्मी के मौसम में क्रिकेट के रोमांच के साथ युवा वर्ग का भरपूर मनोरंजन होने वाला है और इसके साथ ही लोकसभा चुनाव में किस पार्टी की सरकार बन रही है और देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा इसी चर्चा लोगों के बीच होने वाली है। आप नींद में सोये हुए किसी व्यक्ति को जगा कर भी अगर क्रिकेट और लोकसभा चुनावों से जुड़ा कोई प्रश्न करेंगे तो कोई न कोई जवाब आपको मिल ही जाएगा। राजनीति और क्रिकेट की ज्ञान पुड़िया तो हर शख्स जेब में लेकर घूमता रहता है।

देश ने इस बार गर्मियों के मौसम में आम लोगों को ऐसा तोहफा दिया है कि वो खुशियों से सराबोर है। इसी खुशी के कारण वह नेताओं के उबाऊ भाषण भी सुन ले रहे हैं। एक-दो थप्पड़मारों, स्याही-अंडा फेंकने वालों व जूता उछालने वालों को छोड़ दें, तो आम जनता कुछ इस तरह मगन दिख रही है जैसे उसे किसी से कोई शिकायत ही नहीं है। वह परम प्रसन्न और संतुष्ट है। यह सब आईपीएल की महिमा है।

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राजनीति की बहस के साथ-साथ हमारी जबान पर राजस्थान रॉयल्स, डेयर डेविल्स या शाहरुख़ के नाम होंगे। चुनाव के मद्देनज़र समाचार चैनलों पर नेताओं के झूठ और सच के मामलों पर चल रहे डिबेट को हम बडे चाव से देख रहे होंगे तो उसी वक्त युवा क्रिकेट मैच की रंगीनियों में खोये होंगे। क्रिकेट, ग्लैमर और पैसे की चकाचौंध के बलबूते विज्ञापनों का कारोबार और विज्ञापनों के आधार पर इस नुमाइश की कामयाबी के आगे आम-चुनाव के मुद्दे खो जायेंगे, ऐसी संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। खैर आईपीएल का आयोजन हर हाल में कराने वाले किसी भी किमत पर इसका आयोजन कराना चाहेंगे। इन नुमायशी क्रिकेट के कारोबारियों को इन सबसे क्या लेना-देना वो तो कह रहे हैं कि इसबार अगर उन्हें धनलाभ नहीं भी होता है, तो भी वो इसमें अपना पसीना बहायेंगे और हर कीमत पर अपना खेल खेलेंगे। अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर आईपीएल के मैच नहीं हो पाते हैं तो करीब एक हजार करोड़ का घाटा होगा।

न्यूज़ चैनल जो पहले ही कटौती के इस माहौल में कम से कम खर्च करने की नीतियां अपनाये हुए हैं, बजाय जमीनी हकीकत पर उतरने के, स्टूडियोज़ में बैठे-बैठे ही चुनावी रस्में अदा करेंगे। चुनावों में क्या हो रहा है और क्या होगा? जैसे सवालों के बजाय दिनभर ये दिखाते रहेंगे कि आईपीएल में क्या हो चुका है और क्या होने जा रहा है। क्योंकि जिन विज्ञापनों के दम पर वो पैसा खर्च करने समाचार जुटाते हैं वो विज्ञापन तो नुमायशी क्रिकेट की चकाचौंध में शामिल होगें। टीआरपी तो वहीं से आयेगी।

हर चीज़ में राजनीति देखने वाले गृह-मंत्रालय की चिंताओं को भी सियासी चश्में से देख रहे हैं। इंडियन प्रीमियर लीग बनाम इंडियन पॉलिटिकल लीग का नया खेल सियासी रंग लेता जा रहा है। लगता है कि आईपीएल, सत्ता और विपक्ष के बीच राजनैतिक लड़ाई का माहौल बनायेगा क्योंकि करीब करीब सभी कांग्रेसी सत्ता वाले राज्य आईपीएल की सुरक्षा से मुंह मोड़ रहे हैं और सारे भाजपा शासित प्रदेश आईपीएल और चुनाव की सुरक्षा एक साथ करने के संकेत दे चुके हैं। देश के लोकतंत्र से ज़्यादा फ़िक्र लोगों को इस बात की है कि आईपीएल का क्या होगा?

वैसे भी जो खेल हो रहा है उससे क्रिकेट का कितना लेना देना है ये तो सभी को पता है। ये बहस क्यों नहीं की जा रही है कि देश का लोकतंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण है या आईपीएल? सवाल ये नहीं है कि कितनी संजीदगी से आम-चुनाव में लोग हिस्सा लेंगे, सवाल ये है कि हम इसके लिये कितना गंभीर माहौल बना रहे हैं?

हिन्दुस्थान समाचार/सुनील


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